अमेठी में राहुल गांधी की हार देश के कई इलाकों में परिवार और वंशवाद की राजनीति की हार का प्रतिबिंब भी है.
हालांकि हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर, राजस्थान से दुष्यंत सिंह और महाराष्ट्र से पूनम महाजन कुछ ऐसे नाम हैं जो बीजेपी में राजनीतिक परिवार से आने वाले नेता हैं- लेकिन वंशवाद की राजनीति के लिए विपक्ष की कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का ही नाम आता है. और लोगों ने इनमें से कई नेताओं को खारिज कर दिया. राहुल के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जितेन प्रसाद, अशोक चह्वाण जैसे कांग्रेसी वंशवादी नेता हैं जो हार गये.
इसके अलावा मुलायम सिंह यादव की बहु डिंपल यादव और उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव, लालू यादव की बेटी मीसा भारती और टीआरएस नेता तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता भी हैं. (इस रिपोर्ट के फाइल होने तक के रुझानों और परिणामों के अनुसार)
निश्चित ही, कनिमोई और भतीजे दयानिधि मारन की जीत के साथ करुणानिधि के डीएमके घराने के कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हार से बच गये. लेकिन यह साफ़ है कि वोट पाने के लिए अब आपके पास केवल परिवार के नाम ही काफी नहीं होगा. कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार शायद यह स्पष्ट करती है.
तो आख़िर इस चुनाव के बाद भारत की सबसे पुरानी पार्टी अब कहां खड़ी है? यदि दक्षिण के राज्य में उसे जीत न मिली होती तो यह उनका अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन होता.
जिन 50 के क़रीब जिन सीटों पर उन्हें जीत मिली है उनमें से लगभग 30 दक्षिण के राज्यों केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना से हैं. बाकी ज़्यादातर सीटें पंजाब से आई हैं.
लेकिन तथ्य यह भी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में उनका सफ़ाया हो गया है जबकि हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वो वोट भुनाने में नाकाम रहे वहीं छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी हार गये जहां कुछ दिनों पहले ही हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें जीत मिली थी.
राहुल गांधी का नेतृत्व गंभीर सवालों के घेरे में है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनकी बहन प्रियंका भी प्रभाव छोड़ने में विफल रही हैं. तो, क्या कांग्रेस वैकल्पिक नेतृत्व की तलाश करेगी?
अब उल्लेखनीय यह है कि एनडीए को लोकसभा में भारी बहुमत हासिल है. और जैसा कि संभावना है, यदि जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी भी एनडीए का समर्थन करती है तो यह निचले सदन में दो तिहाई का आंकड़ा पार कर जायेगी. इसका मतलब यह होगा कि विपक्ष में सभी होंगे लेकिन केवल नाम के लिए.
उनके बचपन से लेकर बुढ़ापे तक के सफ़र में देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु भी दिखाई गई है. उनके इस सफ़र में देश और उनके जीवन में क्या-क्या बदलाव आए फ़िल्म की कहानी में बख़ूबी दिखाया गया है.
सलमान ख़ान कहते हैं कि वो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पसंद करते हैं. उन्हें वे प्यार से बापजी बुलाते थे.
वे कहते हैं, ''वे सुंदर थे, उनका स्वाभाव बहुत ही अच्छा था और वो बहुत बहुत ही अच्छे इंसान थे. फिल्म 'दबंग' के समय मेरी उनसे आख़िरी बात हुई थी. उन्होंने उस समय मेरी फ़िल्म भी देखी थी. मैं हमेशा उनसे बहुत ही प्रभावित हुआ हूं.
इसी बातचीत में वे आगे कहते हैं कि जो देश के लिए अच्छा काम करे और देश के लिए अच्छा है वो ही अच्छा प्रधानमंत्री होता है.
कई फ़िल्मी कलाकार ऐसे हैं जिनका फ़िल्मी करियर ख़त्म होने के बाद वे राजनीति में आ गए. जिनमें जयललिता, हेमा मालिनी, शत्रुघन, जया प्रदा, जया बच्चन, किरन खेर, परेश रावल, राज बब्बर आदि नाम शामिल हैं.
सलमान ख़ान कहते हैं, ''अभी तक उन्हें किसी राजनीति पार्टी से कोई ऑफ़र नहीं है. अगर आएगा तो भी फिलहाल राजनीति में आने का मेरा अभी कोई इरादा नहीं.
देशभक्त किसे कहा जा सकता है इस सवाल के जवाब में सलमान ख़ान मानते है, ''वे अपने आप को देशभक्त मानते हैं. उनकी नज़र में वो सभी देशभक्त है जो इस देश की मिट्टी में पैदा हुए है, जिनका परिवार यहाँ का है और उनकी पहचान यहाँ की है.
सच्चाई के साथ चलने वाला हर व्यक्ति देशभक्त है. चोरी, चकारी, मक्कारी या किसी तरह का स्कैम करने वाले देशभक्त नहीं हो सकते. जो अपने ही देश में लूटमार करें, किसी को बेवकूफ़ बना रहे हो, तरह-तरह के स्कैम कसलमान ख़ान को लेकर उनके फैंस की दिवानगी देखते ही बनती है. उनके फैंस प्यार से उन्हें भाई कहते हैं. उनकी आने वाली फ़िल्म का ज़िक्र शुरु होने पर ही उनकी फ़िल्म का इंतज़ार लोग बेसब्री से किया जाता है.
उन्होंने अभी तक सैंकड़ों फ़िल्में कर ली है. उनमें से कई फ़िल्मों ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई भी की है. लेकिन आज तक उन्हें एक भी नेशनल अवार्ड नहीं मिला है.
वे बताते हैं, 'मुझे नेशनल अवार्ड या किसी भी तरह का अवार्ड नहीं चाहिए. मुझे तो सिर्फ़ रिवॉर्ड चाहिए कि मेरी फिल्म लोग थिएटर में जाकर देखे लें. पूरा देश मेरी फ़िल्म देख ले तो इस से बड़ा अवार्ड क्या होगा.'
वे कहते हैं कि प्रियंका का शुक्रिया अदा करना सही लगा क्योंकि वो शूटिंग शुरु होने से पांच दिन पहले ही आकर फ़िल्म के लिए मना किया कि मैं ये फ़िल्म छोड़ रही हूं. और अगर प्रियंका मना नहीं करती तो कैटरीना कैफ़ को इस फ़िल्म में काम करने का मौका कैसे मिलता.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सलमान ख़ान कहते हैं, ''इस फ़िल्म में कैटरीना का रोल बहुत अच्छा है. लेकिन अभी प्रियंका जो किरदार निभा रही हैं वो उससे भी ज्यादा अच्छा है यानि एक पत्नी का.
वे बताते हैं कि उनकी मज़बूरी थी उन्होंने मुझे मना किया. मैने कहा था कि शूटिंग की डेट आगे बड़ा देंगे लेकिन वे नहीं मानी.
वे इस जोड़ते हैं ''उन्होंने बॉलीवुड और हॉलीवुड में इतनी मेहनत की है और अपनी एक पहचान बनाई है. उनके करियर की बड़ी फ़िल्म थी ऐसे में इतना बड़ा फ़ैसला लेना काबिले तारीफ है.''
''हालांकि उनके ज़हन में ये भी चल रहा होगा कि ये फ़िल्म छोड़ दूंगी तो आगे सलमान के साथ काम मिलेगा भी या नहीं. लेकिन उन्होंने अपना फ़ैसला चुना और शादी की ये कमाल की बात थी वरना बड़े रोल के लिए तो लोग अपना पति तक छोड़ देते हैं.''
फ़िल्म का निर्देशन अली अब्बास जफ़र ने किया है. यह फिल्म 5 जून को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी.
हालांकि हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर, राजस्थान से दुष्यंत सिंह और महाराष्ट्र से पूनम महाजन कुछ ऐसे नाम हैं जो बीजेपी में राजनीतिक परिवार से आने वाले नेता हैं- लेकिन वंशवाद की राजनीति के लिए विपक्ष की कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का ही नाम आता है. और लोगों ने इनमें से कई नेताओं को खारिज कर दिया. राहुल के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जितेन प्रसाद, अशोक चह्वाण जैसे कांग्रेसी वंशवादी नेता हैं जो हार गये.
इसके अलावा मुलायम सिंह यादव की बहु डिंपल यादव और उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव, लालू यादव की बेटी मीसा भारती और टीआरएस नेता तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता भी हैं. (इस रिपोर्ट के फाइल होने तक के रुझानों और परिणामों के अनुसार)
निश्चित ही, कनिमोई और भतीजे दयानिधि मारन की जीत के साथ करुणानिधि के डीएमके घराने के कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हार से बच गये. लेकिन यह साफ़ है कि वोट पाने के लिए अब आपके पास केवल परिवार के नाम ही काफी नहीं होगा. कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार शायद यह स्पष्ट करती है.
तो आख़िर इस चुनाव के बाद भारत की सबसे पुरानी पार्टी अब कहां खड़ी है? यदि दक्षिण के राज्य में उसे जीत न मिली होती तो यह उनका अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन होता.
जिन 50 के क़रीब जिन सीटों पर उन्हें जीत मिली है उनमें से लगभग 30 दक्षिण के राज्यों केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना से हैं. बाकी ज़्यादातर सीटें पंजाब से आई हैं.
लेकिन तथ्य यह भी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में उनका सफ़ाया हो गया है जबकि हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वो वोट भुनाने में नाकाम रहे वहीं छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी हार गये जहां कुछ दिनों पहले ही हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें जीत मिली थी.
राहुल गांधी का नेतृत्व गंभीर सवालों के घेरे में है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनकी बहन प्रियंका भी प्रभाव छोड़ने में विफल रही हैं. तो, क्या कांग्रेस वैकल्पिक नेतृत्व की तलाश करेगी?
अब उल्लेखनीय यह है कि एनडीए को लोकसभा में भारी बहुमत हासिल है. और जैसा कि संभावना है, यदि जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी भी एनडीए का समर्थन करती है तो यह निचले सदन में दो तिहाई का आंकड़ा पार कर जायेगी. इसका मतलब यह होगा कि विपक्ष में सभी होंगे लेकिन केवल नाम के लिए.
भारतीय सिनेमा में सलमान ख़ान की फ़िल्म 'भारत' काफ़ी चर्चा में हैं. फ़िल्म में साल 1964 से लेकर 2010 तक सफ़र दिखाया गया है.
फ़िल्म
में सलमान का नाम भारत है जिनके नाम पर ही फ़िल्म का नाम आधारित है. फ़िल्म में सलमान खान यानि भारत के 46 साल का सफ़र दिखाया गया है.उनके बचपन से लेकर बुढ़ापे तक के सफ़र में देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु भी दिखाई गई है. उनके इस सफ़र में देश और उनके जीवन में क्या-क्या बदलाव आए फ़िल्म की कहानी में बख़ूबी दिखाया गया है.
सलमान ख़ान कहते हैं कि वो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पसंद करते हैं. उन्हें वे प्यार से बापजी बुलाते थे.
वे कहते हैं, ''वे सुंदर थे, उनका स्वाभाव बहुत ही अच्छा था और वो बहुत बहुत ही अच्छे इंसान थे. फिल्म 'दबंग' के समय मेरी उनसे आख़िरी बात हुई थी. उन्होंने उस समय मेरी फ़िल्म भी देखी थी. मैं हमेशा उनसे बहुत ही प्रभावित हुआ हूं.
इसी बातचीत में वे आगे कहते हैं कि जो देश के लिए अच्छा काम करे और देश के लिए अच्छा है वो ही अच्छा प्रधानमंत्री होता है.
कई फ़िल्मी कलाकार ऐसे हैं जिनका फ़िल्मी करियर ख़त्म होने के बाद वे राजनीति में आ गए. जिनमें जयललिता, हेमा मालिनी, शत्रुघन, जया प्रदा, जया बच्चन, किरन खेर, परेश रावल, राज बब्बर आदि नाम शामिल हैं.
सलमान ख़ान कहते हैं, ''अभी तक उन्हें किसी राजनीति पार्टी से कोई ऑफ़र नहीं है. अगर आएगा तो भी फिलहाल राजनीति में आने का मेरा अभी कोई इरादा नहीं.
देशभक्त किसे कहा जा सकता है इस सवाल के जवाब में सलमान ख़ान मानते है, ''वे अपने आप को देशभक्त मानते हैं. उनकी नज़र में वो सभी देशभक्त है जो इस देश की मिट्टी में पैदा हुए है, जिनका परिवार यहाँ का है और उनकी पहचान यहाँ की है.
सच्चाई के साथ चलने वाला हर व्यक्ति देशभक्त है. चोरी, चकारी, मक्कारी या किसी तरह का स्कैम करने वाले देशभक्त नहीं हो सकते. जो अपने ही देश में लूटमार करें, किसी को बेवकूफ़ बना रहे हो, तरह-तरह के स्कैम कसलमान ख़ान को लेकर उनके फैंस की दिवानगी देखते ही बनती है. उनके फैंस प्यार से उन्हें भाई कहते हैं. उनकी आने वाली फ़िल्म का ज़िक्र शुरु होने पर ही उनकी फ़िल्म का इंतज़ार लोग बेसब्री से किया जाता है.
उन्होंने अभी तक सैंकड़ों फ़िल्में कर ली है. उनमें से कई फ़िल्मों ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई भी की है. लेकिन आज तक उन्हें एक भी नेशनल अवार्ड नहीं मिला है.
वे बताते हैं, 'मुझे नेशनल अवार्ड या किसी भी तरह का अवार्ड नहीं चाहिए. मुझे तो सिर्फ़ रिवॉर्ड चाहिए कि मेरी फिल्म लोग थिएटर में जाकर देखे लें. पूरा देश मेरी फ़िल्म देख ले तो इस से बड़ा अवार्ड क्या होगा.'
वे कहते हैं कि प्रियंका का शुक्रिया अदा करना सही लगा क्योंकि वो शूटिंग शुरु होने से पांच दिन पहले ही आकर फ़िल्म के लिए मना किया कि मैं ये फ़िल्म छोड़ रही हूं. और अगर प्रियंका मना नहीं करती तो कैटरीना कैफ़ को इस फ़िल्म में काम करने का मौका कैसे मिलता.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सलमान ख़ान कहते हैं, ''इस फ़िल्म में कैटरीना का रोल बहुत अच्छा है. लेकिन अभी प्रियंका जो किरदार निभा रही हैं वो उससे भी ज्यादा अच्छा है यानि एक पत्नी का.
वे बताते हैं कि उनकी मज़बूरी थी उन्होंने मुझे मना किया. मैने कहा था कि शूटिंग की डेट आगे बड़ा देंगे लेकिन वे नहीं मानी.
वे इस जोड़ते हैं ''उन्होंने बॉलीवुड और हॉलीवुड में इतनी मेहनत की है और अपनी एक पहचान बनाई है. उनके करियर की बड़ी फ़िल्म थी ऐसे में इतना बड़ा फ़ैसला लेना काबिले तारीफ है.''
''हालांकि उनके ज़हन में ये भी चल रहा होगा कि ये फ़िल्म छोड़ दूंगी तो आगे सलमान के साथ काम मिलेगा भी या नहीं. लेकिन उन्होंने अपना फ़ैसला चुना और शादी की ये कमाल की बात थी वरना बड़े रोल के लिए तो लोग अपना पति तक छोड़ देते हैं.''
फ़िल्म का निर्देशन अली अब्बास जफ़र ने किया है. यह फिल्म 5 जून को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी.
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